अफ्रीकी कवितायें
अंग्रेज़ी से अनुवाद – डॉ हेमेन्द्र चंडालिया
1
तुम पागल हो : और मैं यही कहना चाहती हूँ !
- -फ़ुमज़िले जुलू, दक्षिण अफ्रीका
तुम क्या कहना चाहते थे जब तुमने
मुझे बर्बर, जंगली और अनीश्वर वादी कहा
तुम अवश्य ही पागल रहे होगे
मैं अब जान गयी हूँ
मैं अब यह कहती हूँ और यही है मेरा आशय |
जब तुमने मुझे यहाँ अफ्रीका में पाया
तुमने कहा मैं भूखी थी
तुम एक बड़ी सी किताब लेकर आए
जिसका नाम था ‘बाइबल ‘
और तुमने स्वयं को कहा मिशनरी
तुम मेरे जीवन के लिए भोजन प्रदान करने वाले थे
किन्तु मैं हो गयी आश्चर्यचकित
जब मैंने पाया
मैं इतनी क्षुधित कभी नहीं थी पहले
रोटी के बजाय तुमने दिये कुछ टुकड़े
शायद तुम मेरे मुंह में
बस पानी लाना चाहते भर थे
तुम ऐसा व्यवहार करते क्यों हो
स्थूल नियंत्रण करने वाले प्रयोग कर्ता
जिसने पहले स्वयं को कहा
सच्चा दानशील मनुष्य |
मैंने अनुभव कर लिया है कि
इतनी अच्छी नहीं थी तुम्हारी मंशा
तुम यहाँ मेरी संपत्ति की टोह लेने आए थे
मिशनरी के छद्म आवरण में शैतान जासूस
तुम क्या सोचते थे कि हो जाओगे सफल
हमेशा , हमेशा के लिए ?
देखो यहाँ … अब जब तुम्हें हो गया है ज्ञात
कि मुझे बस में करना नहीं है आसान
तुम करने लगे हो चालाकियाँ
पर तुम हो चुके हो असफल
अपनी दास बनाने वाली शिक्षा के बावजूद
तुम सोचते थे मैं झुक जाऊँगी
पर कब तक ?
तुमने चुरा ली हैं हमारे पुरखों की जमीने
तुम सोचते थे मैं मान लूँगी हार
पर कब तक … हुंह
मैं कहना चाहती हूँ
और यही है मेरा आशय
अब मैं तुम्हारा झूठ बर्दाश्त नहीं करूंगी |
तुमने पाया था मुझे सुविधा जनक
तुमने प्रार्थना की मुझसे
कि मैं दूँ तुम्हें साफ पानी और सब्जियाँ
और अंत में मेरा रक्त बन गया है पानी तुम्हारा
मेरा शरीर तुम्हारी सब्जियाँ
मेंने पकड़ाई थी तुम्हें अंगुली
मेरा पहुंचा पकड़ लेना चाहते हो तुम
तुम मुझे हासिल नहीं कर पाओगे
और यही कहना चाहती हूँ मैं |
तुम कहते हो कि तुम मुझे दोगे
मेरी अपनी ज़मीन के टुकड़े यहाँ वहाँ बिखरे
और यह कि तुम्हारा
यह देश तुम्हारा, श्वेतों का है
भूल गए हो तुम कैसे आए थे यहाँ ?
तुम मूर्ख हो , तुम पागल हो
उर मैं यह कहना चाहती हूँ |
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2
मैंने किया है बहुत प्रयास
-जिन्द्ज़ि मंडेला, दक्षिण अफ्रीका
मैंने किया है बहुत प्रयास, भाई
और मैं नहीं मानूँगी हार
चाहे वह
जिसे मैं नहीं देख सकती
रेंगते हुए आ जाएँ मेरे पीछे
और कर दे मुझे चकनाचूर
और चाहे वह जिसे मैं नहीं देख सकती
मुझ से आगे निकाल जाये
मुझे छोडकर पीछे
विचार करने के लिए
निष्कर्षतः मुझे लेना है अभी
एक और कदम
और उसी समय सीमा में
होना है विकसित |
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3
मैं रही प्रतीक्षारत तुम्हारी , बीती रात
-जिन्द्ज़ि मंडेला, दक्षिण अफ्रीका
मैं रही तुम्हारी प्रतीक्षारत , बीती रात
अपने बिस्तर में लेटी थी मैं
नुचे हुए पुष्प की तरह
गिरती पंखुड़ियों से मेरे आँसू |
मेरे कमरे ने जो
अपने भीतर खींची श्वास सी ध्वनि
और निगल ली
मेरे कानों में
खिड़की पर खटखटाने की आवाज़ |
उठ कर खोला मैंने उसे
और एक तितली उड़ आई भीतर
मेरी गर्दन पर बिखेरते हुए कुछ कण
अचकचा कर मैंने
पकड़ लिए उसके नन्हें पंख
और चूम लिया उसे
फिर वापस अपने बिस्तर में लेट गयी मैं
उसे मेरे माथे के इर्द – गिर्द मंडराने के लिए छोडकर,
बीती रात प्रतीक्षारत रही मैं तुम्हारे लिए |
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4
कभी – कभी जब बरसात होती है
- ग्सीना म्हलोफ , दक्षिण अफ्रीका
कभी – कभी जब बरसात होती है
मैं अपने आप में मगन मुस्कराता हूँ
और सोचता हूँ उस समय के बारे में
जब एक बालक की वय में
अकेले बैठे – बैठे आश्चर्य करता था
लोगों को कपड़ों की ज़रूरत क्यों है ?
जब कभी बरसात होती है
मैं उस समय के बारे में सोचता हूँ
जब मैं बारिश में भागता चला जाता था
चिल्लाते हुए , “मैं कब बड़ा होऊँगा?”
“मैं कल बड़ा हो जाऊंगा?”
कभी – कभी जब बरसात होती है
मैं उस समय के बारे में सोचता हूँ
जब मैं देखता बकरियों को
भागते हुए बरसात से
जब की भेड़ें मानो ले रही होती थी आनंद |
जब कभी बरसात होती है
मैं सोचता हूँ उस समय के बारे में
जब हमे खोलनी होती थी पौशाक
और सिर पर पौशाक और किताबों को थामे
पार करनी होती थी नदी
विद्यालय का समय पूरा होने के बाद |
जब कभी बरसात होती है
मैं उस समय के बारे में सोचता हूँ
जब घंटों होती थी बारिश मूसलाधार
और भर जाती थी पानी की कोठियाँ
जिस कारण नहीं लाना होता था पानी
नदी से एक –दो दिनों तक |
कभी – कभी जब बरसात होती है
कई घंटों तक बिना रुके
मैं उन लोगों के बारे में सोचता हूँ
जिंका कोई ठिकाना नहीं है
अपना कोई घर नहीं
न खाने के लिए भोजन
सिर्फ है पानी बरसात का पीने के लिए |
जब कभी बरसात होती है
कई दिनों तक बिना अंतराल
मैं सोचता हूँ उन माताओं के बारे में
जो देती हें जन्म कच्ची बस्तियों में
प्लास्टिक के तरपाल की छाया में
ठिठुराती सर्द हवाओं की दया पर |
कभी – कभी जब बरसात होती है
मैं सोचता हूँ नौकरी की तलाश कर रहे
“अवैध” लोगों के बारे में
बड़े शहरों में बरसात में पुलिस को छकाते हुए
अंधेरा होने की करते उम्मीद
कि ढूंढ सकें कोई गीला कोना छिपने के लिए |
कभी – कभी जब बरसात होती है
बहुत तेज़ ओलों के साथ
मैं सोचता हूँ दुनियाँ कि सारी जेलों में
आजीवन कैद भुगत रहे कैदियों के बारे में ,
और सोचता हूँ क्या अब भी
उन्हे देखना पसंद है इंद्र्धनुष बरसात की समाप्ति पर |
जब कभी बरसात होती है
घास को काटती ज़बरदस्त ओलावृष्टि के साथ
तब मैं स्वयं को रोक नहीं पाता सोचने से
कि वे दिखाई देते हैं दांतों की तरह
मुस्कराते हुए मित्रों के
तब मैं इच्छा करता हूँ कि हर व्यक्ति के पास
हो कोई वजह मुस्कराने की|
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5
रहस्य
- जेनी कोजिन , दक्षिण अफ्रीका
पहले मैं एक हूँ
फिर मैं दो
फिर मैं पुनः एक
उससे जुड़ा हुआ जो थी मेरा ही भाग
मेरी प्रेमिका
मैं मैं हूँ
मैं मैं तथा तुम हूँ
मैं मैं हूँ तथा वह
जो थी मैं और वह
जो मेरे पेट में खिंचती है
और मारती है लातें
जाल में फंसी एक मछली
वह पीटती है हथोड़ा देह के दरवाजों पर
गुफा की दीवारों पर |
एक बीज जिसमे
होते हें अंकुरित भुजाएँ , पैर और आँखें
एक हृदय जो यकायक
शुरू कर देता है स्वयं की धड़कन
एक जीवन जो है मेरा शरीर
मेरी कोशिकाएं , मेरा रक्त
जो है उसका शरीर भी
उसकी हड्डियाँ , उसकी अपनी त्वचा और अस्थि –तंत्र
उसका अपना हृदय
उसके अपने छोटे छोटे हाथ
उसके दो पैर |
जितना मैं समझता हूँ
उससे अधिक हूँ मैं
जैसे ईश्वर रचता है संसार
वैसा ही है यह उसके लिए
सर्वदा विमूढ़ , सर्वदा प्रेमासक्त |
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6
हमारी आवाज़
– नीमिया डिसूजा, दक्षिण अफ्रीका
उठ चुकी है हमारी आवाज़
चेतन और विध्वंसकारी
मनुष्य की श्वेत स्वार्थपरता से ऊपर हमारी आवाज़
सभी की आपराधिक उदासीनता से ऊपर
हमारी आवाज़
झाड़ियों में जमी ओस की बूंदों से ओत–प्रोत
हमारी प्रखर आवाज़ मलंगाओं के सूर्य की तरह
ढ़ोल की थाप सी हमारी आवाज़
जो मेग्विगुवाना के भाले का
करती है आह्वान , भाई
हमारी आवाज़ ने उठा दिया है ज्ञान का चक्रवात |
गीदड़ सी पीली आँखों से
जगाती पश्चाताप
निराश हो चुके लोगों की
उदास आत्माओं में जगाती आशा की लौ
हमारी आवाज़ आह्वान करती
ढ़ोल की थाप सी |
घनी काली रात के अँधेरों में
प्रखर चाँदनी से भरी हमारी आवाज़
तूफानी रातों में प्रकाश स्तम्भ सी
सदियों की पुरानी बाधाओं को
दर्ज करती हमारी आवाज़
हजारों , लाखों लोगों की आवाज़ बनकर देती है
आने वाले विप्लव की सूचना |
पीड़ा से दोहरी हमारी आवाज़
जो तोड़ डालती है सारी बेड़ियाँ
यह है अफ्रीका की आवाज़
हमारी अश्वेत आवाज़
जो चिल्लाती है , चिल्लाती है, चिल्लाती है|
हमारी आवाज़ जिसने मेंढक के गड्ढे में
खोज लिया है पहाड़ सा दुख
जो निकलता है एक साधारण से शब्द “दासता “ से |
बिना रुके लगातार चिल्लाती हमारी आवाज़
शिपालापाला हमारी आवाज़
ढ़ोल की थाप सी हमारी आवाज़
जो करती है आह्वान
हमारी आवाज़ – लाखों लोगों की आवाज़
जो चिल्लाते हैं , चिल्लाते हैं और चिल्लाते हैं |
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